कहानी: "चंदन वन की यक्षिणी"
भाग 1: रहस्यमयी जंगल
राजस्थान के एक सुदूर गाँव बदनपुर के पास एक घना जंगल था – चंदन वन। कहा जाता था कि रात के समय वहाँ से बाँसुरी की आवाज़ आती है, और जो उस आवाज़ के पीछे गया… वह फिर लौट कर नहीं आया।
आरव, एक युवा पुरातत्वविद्, अपने शोध के सिलसिले में गाँव आया था। वह साहसी, बुद्धिमान और रहस्यों का दीवाना था। गाँव वालों की बातों में उसे दिलचस्पी तो आई, पर विश्वास नहीं हुआ।
"शायद कोई प्राचीन मंदिर होगा वहाँ," उसने सोचा और अगली सुबह चंदन वन की ओर निकल पड़ा।
भाग 2: पहली झलक
जैसे ही आरव जंगल के भीतर गया, उसे सुगंधित हवा का झोंका महसूस हुआ। चंदन और रातरानी की मिली-जुली खुशबू ने उसे सम्मोहित कर दिया। अचानक, उसने एक झील के पास उसे देखा…
एक स्त्री… लेकिन सामान्य नहीं। उसकी आँखें पन्ने जैसी हरी थीं, बाल रात जैसे काले, और शरीर से एक हल्की चमक निकल रही थी।
"मैं यक्षिणी हूँ," वह मुस्कुराई।
आरव ठिठक गया। डर और आकर्षण के बीच झूलता उसका दिल कुछ कह नहीं पाया।
"तुम डर नहीं रहे?" उसने पूछा।
"शायद डर और आकर्षण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं," आरव बोला।
भाग 3: रहस्य और रोमांस
यक्षिणी का नाम था चंद्रलेखा। उसने आरव को बताया कि वह एक प्राचीन काल की रक्षक है, जो एक पुराने मंदिर की आत्मा है। पर अब वह बंधी हुई है — जब तक कोई सच्चे प्रेम से उसका नाम नहीं पुकारेगा, वह मुक्त नहीं हो सकती।
आरव और चंद्रलेखा के बीच धीरे-धीरे एक रिश्ता बनने लगा — शब्दों से शुरू हुआ यह जुड़ाव अब स्पर्श तक पहुँचने लगा था।
उनकी मुलाक़ातें हर रात होतीं, झील के किनारे। चंद्रलेखा उसके करीब आती, उसकी सांसों में खुद को घोल देती। उनके बीच एक गहरा, लेकिन अजीब सा रिश्ता बनता जा रहा था — जिसमें प्रेम था, लेकिन एक अदृश्य भय भी।
भाग 4: भय की परतें
एक रात आरव ने चंद्रलेखा से पूछा: "अगर मैं तुम्हें मुक्त कर दूँ, तो क्या तुम मेरे साथ रहोगी?"
वह मुस्कुराई, लेकिन उसकी मुस्कान में दर्द था। "मेरी मुक्ति… तुम्हारी मृत्यु से जुड़ी है, आरव।"
आरव चौंक गया।
"मैं यक्षिणी हूँ। मेरी आत्मा को मुक्त करने के लिए एक प्रेमी की बलि चाहिए। यही नियम है…"
आरव की साँसें थम गईं। एक तरफ उसका प्रेम… और दूसरी तरफ जीवन।
भाग 5: अंतिम निर्णय
अगली सुबह आरव वापस गाँव लौट आया। वह बेचैन था। उसने गाँव के पुजारी से यक्षिणियों की कथाएँ पढ़ीं। यह सच था — यक्षिणियाँ सुंदर होती हैं, मोहक होती हैं… परंतु वे स्वार्थी आत्माएँ होती हैं। उनका प्रेम भ्रम हो सकता है।
पर आरव को भ्रम नहीं लगता था। उसने जो महसूस किया, वो सच्चा था।
उसने निर्णय ले लिया।
अगली पूर्णिमा की रात, वह फिर से झील के पास गया। चंद्रलेखा उसका इंतज़ार कर रही थी, आँखों में आँसू लिए।
"क्या तुम तैयार हो?" उसने पूछा।
आरव ने उसकी आँखों में देखा, धीरे से उसका हाथ पकड़ा, और कहा, "अगर प्रेम सच है, तो मरने से डर नहीं लगता।"
चंद्रलेखा की आँखों से आँसू बहे, और फिर उसके होठों ने आरव को चूमा — एक लंबा, गर्म, आख़िरी चुम्बन।
फिर सब काला हो गया।
भाग 6: पुनर्जन्म
सुबह जब गाँव वाले चंदन वन में पहुँचे, उन्हें झील के पास एक नई मूर्ति दिखी — एक युगल की, जो प्रेम में डूबे थे। कहा जाता है कि आरव ने अपने प्रेम से यक्षिणी को मुक्त कर दिया।
पर अब भी, हर पूर्णिमा की रात, झील के पास बाँसुरी की मीठी तान सुनाई देती है… शायद वो चंद्रलेखा और आरव हैं — जो अब आत्माएँ नहीं, अनंत प्रेम के प्रतीक बन चुके हैं।
