📖 डायन की प्रेम कहानी
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अध्याय 1 – जंगल का रहस्य
गाँव वाले कहते थे—सूर्यास्त के बाद उस घने जंगल में कोई भी नहीं जाता।
“वहाँ एक डायन रहती है… जो इंसानों का खून पी जाती है।”
बच्चे रोते तो माताएँ डराकर चुप करातीं। किसानों की बैलगाड़ियाँ शाम ढलने से पहले गाँव लौट आतीं।
लेकिन वीरेंद्र—एक पढ़ा-लिखा, बहादुर युवक—इन बातों को अंधविश्वास समझता था। उसकी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी।
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अध्याय 2 – पहली दस्तक
एक रात वीरेंद्र लालटेन लेकर जंगल में गया।
हवा ठंडी थी, पेड़ अजीब आवाजें कर रहे थे। अचानक पीछे से सरसराहट हुई…
लंबे काले बालों से ढका चेहरा, लाल चमकती आँखें और फटी-फटी आवाज—
“कौन आया है…?”
वीरेंद्र ने काँपते हुए भी कहा:
“मैं हूँ… इंसान। लेकिन तुम वैसी नहीं हो जैसी बातें कहते हैं।”
वो औरत थी—वैदेही—जिसे सदियों पहले श्राप मिला था।
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अध्याय 3 – दर्द का सच
वैदेही ने धीरे-धीरे अपना सच बताया।
वो कभी एक राजकुमारी थी। उसका दिल एक योद्धा अरिंदम पर आया था।
लेकिन तांत्रिक ने उसे श्राप देकर डायन बना दिया।
अरिंदम की मौत हो गई और वैदेही अमर होकर भटकती रही।
उसकी आँखों में आँसू थे। वीरेंद्र ने कहा:
“तो तुम पिशाचिनी नहीं, बल्कि एक अभागी आत्मा हो।”
उस दिन पहली बार वैदेही को अपने लिए दया और प्रेम का एहसास हुआ।
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अध्याय 4 – प्रेम की शुरुआत
अब वीरेंद्र हर रात जंगल आता।
वो उसे हँसाता, कविताएँ सुनाता, और पुराने किस्से साझा करता।
धीरे-धीरे वैदेही के दिल में फिर से इंसानियत जागने लगी।
एक रात चाँदनी में उसने अपना हाथ वीरेंद्र के हाथ पर रखा।
सदियों बाद उसके चेहरे पर मुस्कान थी।
यह सिर्फ दोस्ती नहीं थी—यह प्रेम का बीज था।
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अध्याय 5 – तांत्रिक की वापसी
लेकिन श्राप देने वाला तांत्रिक मरकर भी समाप्त नहीं हुआ था।
उसकी आत्मा अब भी भटक रही थी।
उसने महसूस किया कि वैदेही का दिल किसी और पर आ गया है।
वो प्रकट हुआ और गरजा:
“मेरे श्राप को कोई नहीं तोड़ सकता। जो मेरे रास्ते में आया, उसका अंत होगा।”
उसने हवाओं में अग्नि और भूतों का तूफ़ान खड़ा कर दिया।
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अध्याय 6 – युद्ध और त्याग
वीरेंद्र ने तलवार उठाई।
तांत्रिक और वीरेंद्र में भयंकर युद्ध हुआ।
मंत्रों की आग, पेड़ों का टूटना, धरती का काँपना—सबकुछ थर्रा उठा।
वैदेही ने भी अपना राक्षसी रूप त्याग दिया।
उसने वीरेंद्र का हाथ थामा और दोनों ने मिलकर एक मंत्र उच्चारा।
प्रेम की शक्ति ने तांत्रिक की काली ताकत को राख बना दिया।
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अध्याय 7 – श्राप का अंत
तांत्रिक की हार के साथ ही श्राप टूट गया।
वैदेही की लाल आँखें गायब हो गईं, उसके चेहरे पर पुरानी सुंदरता लौट आई।
उसने आँसुओं भरी मुस्कान के साथ कहा:
“सदियों से जिस मुक्ति की तलाश थी, वह मुझे तुम्हारे प्रेम में मिली।”
वीरेंद्र ने उसे गले लगा लिया।
गाँव का जंगल, जो भय का प्रतीक था, अब प्रेम की कहानी बन गया।
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