"चंद्रवटी की यक्षिणी"

कहानी: "चंद्रवटी की यक्षिणी"




भाग 1: रहस्यमयी जंगल


अरविंद एक पुरातत्वविद् था, जो भारत के सबसे पुराने और भूले-बिसरे मंदिरों की खोज करता था। एक दिन उसे एक पुरानी हस्तलिपि मिली, जिसमें एक गुप्त मंदिर का उल्लेख था — चंद्रवटी नामक एक स्थान पर स्थित मंदिर, जहाँ "यक्षिणी चंद्रिका" का वास बताया गया था।


लोगों का कहना था कि वहाँ कोई नहीं जाता। जो गए, वे लौटे नहीं। लेकिन अरविंद को रहस्य की तलाश थी — और शायद भाग्य की भी।


भाग 2: जंगल में प्रवेश


जैसे ही वह चंद्रवटी के जंगल में पहुँचा, हर दिशा में अजीब सी सरसराहट थी। रात होते ही उसने मंदिर के खंडहरों में शरण ली। वहाँ उसकी मुलाकात एक रहस्यमयी स्त्री से हुई — उसके लंबे बाल, चमकती आँखें और मंद मुस्कान ने अरविंद को मंत्रमुग्ध कर दिया।


"तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था…" — उसने कहा।


"तुम कौन हो?" — अरविंद ने पूछा।


"मैं… चंद्रिका हूँ। इस मंदिर की रक्षक।"


वह धीरे-धीरे उसके करीब आई। उसकी आँखों में एक जादू था — ऐसा जैसे समय रुक गया हो।


भाग 3: प्रेम या फँसाव?


अरविंद और चंद्रिका के बीच अजीब सा आकर्षण बढ़ता गया। रातों को वह उसे सपनों में बुलाती, कभी नदी के किनारे, कभी मंदिर के गर्भगृह में। हर बार जब वे मिलते, उनके बीच वासना की आग भड़क उठती। उसका स्पर्श एक साथ सुखद और भयानक था।


लेकिन अरविंद को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि चंद्रिका एक इंसान नहीं है… वह एक यक्षिणी है — जो सौंदर्य के मोहजाल में पुरुषों को फँसाकर उनकी आत्मा चुरा लेती है।


भाग 4: यथार्थ का भय


एक रात, जब अरविंद उसके साथ था, उसने मंदिर की दीवारों पर अजीब चित्र देखे — जिनमें चंद्रिका को दिखाया गया था, जो पुरुषों को प्रेमजाल में फँसाकर उनका रक्त पी रही थी।


"तुम मुझसे क्या चाहती हो?" — उसने डरते हुए पूछा।


चंद्रिका मुस्कराई, और बोली,

"तुम मुझसे प्रेम करते हो न? फिर अपनी आत्मा मुझे दे दो…"


वह उसकी ओर बढ़ी — अब उसका सौंदर्य विकराल लगने लगा था। उसके नाखून पंजों में बदल चुके थे, आँखें सुर्ख़ थीं, और हवा में एक सड़ी हुई गंध तैर रही थी।


भाग 5: अंतिम निर्णय


अरविंद भागा। जंगल उसे निगलने को तैयार था। लेकिन चंद्रिका की आवाज़ हर जगह गूंज रही थी —

"तुमने मुझे प्रेम किया था… अब छोड़कर नहीं जा सकते…"


एक पुराना तांत्रिक ग्रंथ याद आया — जिसमें लिखा था कि यक्षिणी से मुक्त होने के लिए उसे उसी प्रेम के नाम पर वचन तोड़ना होता है।


वह मंदिर लौटा, और चंद्रिका से कहा:

"मैं तुमसे प्रेम नहीं करता। तुम्हारा सौंदर्य झूठा है, तुम्हारा प्रेम छलावा।"


चंद्रिका चीखी, और एक तूफान सा उठा। मंदिर गिरने लगा। एक तेज़ रोशनी फैली — और सब कुछ शांत हो गया।


अंत: छूटा नहीं कभी


अरविंद तो बच गया… लेकिन चंद्रिका का एक छाया रूप अब भी उसके साथ है। हर रात, जब वह सोने जाता है, कोई अदृश्य उँगलियाँ उसके गले के पास से गुजरती हैं… और एक फुसफुसाहट सुनाई देती है —

"प्रेम अधूरा नहीं होता… अरविंद…"



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