🌕 अध्याय 4: अंतिम रात्रि — प्रेम, देह और निर्णय
रात्रि गहराने लगी थी।
झील के ऊपर चाँद अपनी पूरी रोशनी के साथ टिका था।
हवा में एक बेचैन सी गंध थी — जैसे प्रेम, विरह और मृत्यु साथ-साथ साँस ले रहे हों।
आरव, आख़िरी बार चंद्रलेखा से मिलने झील के किनारे पहुँचा।
वह जानता था —
यह रात सिर्फ मिलन की नहीं, एक चुनाव की रात थी।
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🧝♀️ चंद्रलेखा की पुकार
चंद्रलेखा झील से बाहर आई,
भीगे हुए तन पर चाँदनी गिर रही थी — वह इस धरती की नहीं लग रही थी।
उसने आरव को देखा…
और कोई शब्द कहे बिना उसे बाँहों में भर लिया।
> “क्या यह हमारी आख़िरी रात है?”
आरव ने पूछा।
> “यह वह रात है…
जब या तो हम एक हो जाएँगे… या बिछड़ जाएँगे।
पर अब मैं झूठ नहीं बोलूँगी।”
चंद्रलेखा की आँखों में आँसू थे।
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🔥 आत्मा और देह का संगम
उन दोनों ने एक-दूसरे को देखा —
ना कोई डर, ना कोई वादा।
बस एक प्रबल प्रेम की लहर,
जो अब सिर्फ मन में नहीं, देह में उतरने वाली थी।
चंद्रलेखा ने अपने वस्त्र त्यागे —
उसकी नग्न देह पर चाँद की रोशनी पड़ रही थी,
जैसे वह किसी स्वर्गलोक की मूर्ति हो।
आरव ने उसके गाल पर हाथ फेरा,
और पहली बार…
उनके बीच शब्दों से परे का संवाद शुरू हुआ।
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🌺 प्रेम का चरम — सौंदर्य और अग्नि
झील के किनारे,
वह दोनों एक-दूसरे में समा गए —
एक देह, एक आत्मा, एक कंपन।
चंद्रलेखा की साँसें तेज़ थीं,
उसका शरीर काँप रहा था,
और आरव ने उसे वैसे छुआ —
जैसे वह उसे किसी शाप से नहीं, प्रेम से मुक्त कर रहा हो।
> उनके होंठ…
उनके आलिंगन…
और उनकी आवाज़ें —
सब इस रात को चिरकालिक बना रहे थे।
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🕯️ निर्णय की घड़ी
मिलन के बाद, चंद्रलेखा ने कहा:
> “अब समय आ गया है।
अगर तुम चाहो…
तो मैं तुम्हें अपने साथ यक्ष बना सकती हूँ।
हम अमर होंगे।
इस जंगल में, इस झील के पास…
हमेशा… नग्न, मुक्त, प्रेम में लिपटे।”
आरव चुप रहा।
उसके पास था —
1. अमर प्रेम, लेकिन इंसानियत खो देने की कीमत पर।
2. या चंद्रलेखा की मुक्ति, लेकिन खुद उससे सदा के लिए बिछड़ने की कीमत पर।
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🔱 तांत्रिक का अंतिम मन्त्र
अचानक आरव ने अपनी जेब से रुद्राक्ष और एक कागज़ निकाला।
वह वही मन्त्र था जो तांत्रिक कालनेमि ने उसे दिया था —
> "प्रेम से मुक्त करो, वासना से नहीं।
सत्य से बाँधो, मोह से नहीं।
आत्मा को स्पर्श दो, देह को त्याग कर।"
उसने मंत्र पढ़ा…
चंद्रलेखा चीख उठी —
उसका शरीर जलने लगा,
लेकिन उसका चेहरा शांत था।
> “आरव… तुमने मुझे प्रेम में मुक्त किया।
अब मैं जन्म लूँगी… एक बार फिर, एक स्त्री बनकर।
और शायद… अगली बार… हम फिर मिलें…”
उसकी देह भस्म हो गई।
और झील के ऊपर चंद्रमा धीमा हो गया।
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🌅 अंतिम दृश्य
सुबह, आरव अकेला था।
वो झील के पास बैठा, हाथ में उसका रुद्राक्ष लिए हुए।
उसने अपनी देह से प्रेम किया,
लेकिन आत्मा से प्रेम कर उसे मुक्त किया।
और यही था सच्चा प्रेम।
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💫 समाप्त
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✨ कहानी से जुड़ा भावार्थ:
यह कहानी सिर्फ वासना या हॉरर की नहीं,
बल्कि एक ऐसे प्रेम की है जो शारीरिक मिलन के बाद भी आत्मिक त्याग में बदल गया।
एक यक्षिणी, जो सौंदर्य और देह का प्रतीक थी —
उसने एक इंसान से पहली बार प्रेम सीखा, और उसी प्रेम ने उसे मुक्ति दी।
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