🌑 शोण और कर्णपिशाचिनी की दहशत 🌑
🌒 गाँव में आतंक
उत्तर भारत के एक छोटे गाँव में अजीब घटनाएँ शुरू हो गईं। रात के समय बच्चों की चीखें सुनाई देतीं, पेड़ों पर खून के धब्बे मिलते और लोग अचानक गायब हो जाते।
गाँव के बुज़ुर्गों ने कहा –
“यह सब कर्णपिशाचिनी का काम है। वह कान में फुसफुसाकर इंसान की आत्मा चुरा लेती है।”
गाँववाले डर के साए में जीने लगे। तभी आगे आया शोण – गाँव का बहादुर योद्धा।
🌘 पहला सामना
एक अमावस्या की रात, शोण तलवार और कवच लेकर जंगल में गया।
चारों तरफ़ सन्नाटा था। हवा ठंडी और भारी थी।
अचानक पेड़ों से एक आवाज़ आई –
“शोण… तू मुझे नहीं रोक पाएगा…”
काले धुएँ से एक औरत प्रकट हुई। उसके बाल लंबे, आँखें अंगारे जैसी और दाँत राक्षसी थे।
वह थी – कर्णपिशाचिनी।
🌑 भय और फाइट
वह एक ही झटके में शोण की ओर झपटी। उसके नाखून हवा को चीरते हुए निकले।
शोण ने तलवार से वार किया, लेकिन वह धुएँ में बदलकर पीछे से आ गई और उसके कान में फुसफुसाई –
“तेरी मौत यहीं है…”
शोण दर्द से कराह उठा लेकिन हार नहीं मानी।
उसने कवच से मंत्रों की शक्ति जगाई – नीली आभा उसके चारों ओर फैल गई।
पिशाचिनी ने अपनी परछाइयों को जीवित कर दिया। वे साए जैसे भूत शोण पर टूट पड़े।
शोण ने जोर से तलवार घुमाई और सब राख हो गए।
🌑 भावनात्मक मोड़
अचानक पिशाचिनी रो पड़ी। उसका रूप बदल गया और वह एक सुंदर युवती के रूप में सामने आई।
उसने कहा –
“मैं निर्दोष थी। मेरे ही परिवार ने मुझे मारकर इस जंगल में फेंक दिया। मैं बदला लेने के लिए पिशाचिनी बनी।”
शोण की आँखों में दया भर आई।
उसने कहा –
“तेरा बदला तुझे मुक्ति नहीं देगा। छोड़ दे इन मासूमों को, मैं तुझे मोक्ष दिलाऊँगा।”
लेकिन उसके क्रोध ने उसे अंधा कर दिया।
वह चीखते हुए फिर राक्षसी रूप में लौट आई।
🌑 अंतिम युद्ध
आकाश में बिजली चमकने लगी। बारिश शुरू हो गई।
जंगल रणभूमि में बदल गया।
शोण ने अपनी आखिरी ताक़त जुटाई और मंत्र बोला –
“ॐ कालभैरवाय नमः!”
उसकी तलवार में आग जल उठी।
पिशाचिनी ने अपने नाखून फैलाए और सीधे उस पर टूट पड़ी।
शोण ने छलांग लगाई और जलती तलवार उसकी छाती में भोंक दी।
कर्णपिशाचिनी ने भयानक चीख मारी। उसका शरीर काले धुएँ में बदलकर आकाश में विलीन हो गया।
🌑 अंत
शोण ज़मीन पर गिरा, घायल लेकिन विजयी।
सुबह जब गाँववाले उसे मंदिर के पास मिले, तो उसने आँखें खोलकर कहा –
“डर और बदला केवल विनाश लाते हैं। सच्ची शक्ति मुक्ति और प्रेम में है।”
गाँव फिर से सुरक्षित हो गया।
और कर्णपिशाचिनी की आत्मा को आखिरकार शांति मिल गई।
