कहानी: "चंदन वन की यक्षिणी"
(एक रोमांचक, डरावनी और रहस्यमयी प्रेम कथा)
भूमिका
केरल के पश्चिमी घाटों के घने जंगलों के बीच बसा था एक रहस्यमय वन – चंदन वन। इस वन में जाने से गाँव वाले डरते थे, क्योंकि वहां रात के समय रहस्यमयी रौशनी, गंध, और कभी-कभी साँसों की आवाज़ें सुनाई देती थीं। कहा जाता था कि वहाँ एक यक्षिणी रहती है – सुंदर, मोहक और खतरनाक।
अध्याय 1: आगमन
आरव, एक पुरातत्वविद्, को चंदन वन में एक प्राचीन मंदिर की जानकारी मिली। उसे रोमांच पसंद था, और रहस्यों की गहराई में उतरना उसकी आदत थी। एक दिन, वह अपने उपकरणों के साथ अकेले ही जंगल की ओर निकल पड़ा।
जैसे-जैसे वह जंगल में गहराई तक गया, उसे महसूस हुआ जैसे कोई उसे देख रहा है। हवा में एक अजीब सी महक थी – चंदन, केसर और कुछ और... कुछ कामुक और अलौकिक।
अध्याय 2: भटकाव
एक रात जब आरव ने जंगल में डेरा डाला, वह एक मीठी आवाज़ सुनकर चौंक गया।
"कौन हो तुम, जो मेरे वन में बिना अनुमति आए हो?" – आवाज़ हवा में गूंजी।
अगले ही पल वह प्रकट हुई – यक्षिणी। उसका रूप अवर्णनीय था – लंबे काले बाल, चमकती आँखें, रेशमी वस्त्र, और ऐसा आकर्षण जिससे आरव की सांसें थम गईं। वह ना डर सका, ना कुछ बोल सका।
यक्षिणी ने मुस्कराते हुए कहा –
"मैं हूँ चंद्रिका, इस वन की रक्षक। जो मेरी शर्तें माने, उसे ज्ञान और सुख दोनों दूँगी।"
अध्याय 3: प्रेम और परीक्षा
आरव और चंद्रिका के बीच एक अनोखा रिश्ता पनपने लगा। चंद्रिका उसे जंगल की रहस्यमयी दुनिया दिखाती, पुराने मंदिर के रहस्य बताती, और कभी-कभी रात के समय उसे अपने पास बुलाती।
उनकी मुलाक़ातें धीरे-धीरे गहराती गईं। चंद्रिका कभी उसके मन में झाँकती, कभी उसे विलासिता की अनुभूति कराती – पर हर बार वह उसे चेतावनी देती:
"अगर तुमने मेरे साथ विश्वासघात किया, या लालच दिखाया, तो मेरा रूप बदल जाएगा – और फिर लौटना संभव नहीं होगा।"
अध्याय 4: रहस्य का उद्घाटन
एक दिन आरव ने मंदिर की मूर्ति के नीचे एक रहस्यमयी मंत्र-पत्र पाया, जिसमें लिखा था:
"यक्षिणी प्रेम देती है, पर बंधन में नहीं बंधती। जो उसे केवल शरीर से चाहता है, उसका अंत निश्चित है।"
आरव समझ गया कि उसे केवल यक्षिणी की सुंदरता से नहीं, उसकी आत्मा से प्रेम करना होगा। उसी रात, चंद्रिका ने आरव को एक अंतिम परीक्षा दी – विवाह का प्रस्ताव, पर उसकी आत्मा के साथ, शाश्वत जीवन के लिए।
अध्याय 5: निर्णय और मोक्ष
आरव ने बिना झिझक स्वीकार कर लिया। यक्षिणी ने प्रसन्न होकर कहा:
"तुम पहले पुरुष हो जिसने मुझे शरीर नहीं, आत्मा से चाहा। अब मैं तुम्हारी साथी रहूंगी – इस जीवन में और अगली यात्राओं में भी।"
उनका मिलन एक अलौकिक प्रेम का प्रतीक बन गया। यक्षिणी का श्राप टूटा और वह एक साधारण स्त्री बन गई – पर उसकी शक्तियाँ अब भी थीं। दोनों ने मिलकर चंदन वन में एक आश्रम बनाया, जहाँ वे लोगों को रहस्य, ज्ञान और प्रेम की शिक्षा देने लगे।
समाप्त
यह कहानी हमें बताती है कि प्रेम केवल आकर्षण नहीं होता, बल्कि आत्मा से जुड़ने की कला है। रहस्य और भय से परे, यक्षिणी की यह कथा एक चेतावनी है – कि आत्मा को भुलाकर केवल शरीर से जुड़ने वाला प्रेम, विनाश ला सकता है।
