डायन की प्रेम कहानी
घना जंगल… हवा में अजीब सी सरसराहट, पेड़ों के बीच फैला सन्नाटा और चाँदनी की चांदी जैसी रोशनी। कहते हैं उस जंगल में एक डायन रहती थी। उसके लंबे काले बाल, लाल चमकती आँखें और रहस्यमयी मुस्कान देखकर लोग डर से कांप उठते। गाँव वाले उसके नाम से ही भयभीत रहते थे।
लेकिन सच्चाई कोई नहीं जानता था—वो डायन नहीं, बल्कि सदियों पुराना श्राप झेल रही एक सुंदर कन्या "वैदेही" थी।
---
श्राप की कहानी
सदियों पहले, वैदेही एक राजकुमारी थी। उसका दिल एक वीर योद्धा "अरिंदम" पर आया था। दोनों का प्रेम निष्कलंक था, लेकिन राज्य के तांत्रिक को यह मंजूर नहीं था। तांत्रिक भी वैदेही को चाहता था। असफल होने पर उसने वैदेही को श्राप दिया—
"तू अमर होगी, परंतु डायन के रूप में। तेरी आत्मा प्यासे भूतों के बीच भटकेगी। तेरी आँखों में रक्त, और बाल सर्पों की तरह लहराएंगे।"
श्राप ने वैदेही का जीवन अंधकार में धकेल दिया। उसके प्रिय अरिंदम युद्ध में मारा गया और वैदेही अमर होकर जंगलों में भटकने लगी।
---
सदियों बाद
समय बदल गया। गाँव उसी जंगल के पास बस गया। लोग कहते, रात में अगर किसी ने जंगल में कदम रखा तो कभी लौटकर नहीं आया।
एक दिन गाँव में "वीरेंद्र" नाम का बहादुर युवक आया। वह पढ़ा-लिखा और निडर था। गाँव वालों ने चेतावनी दी:
“रात को उस जंगल में मत जाना। वहाँ डायन है।”
लेकिन वीरेंद्र को अंधविश्वासों पर भरोसा नहीं था। वह सच जानने के लिए जंगल में गया।
---
पहली मुलाकात
गहरी रात… चाँद की रोशनी पेड़ों के बीच छलक रही थी। अचानक, वीरेंद्र के सामने एक काली परछाई आई। हवा तेज़ हो गई। पेड़ हिलने लगे।
लंबे बालों से चेहरा ढका हुआ, लाल आँखों वाली एक औरत सामने खड़ी थी। वही थी—वैदेही, श्रापग्रस्त डायन।
वीरेंद्र ने उसकी आँखों में डर के बजाय दर्द देखा। उसने कहा:
“तुम मुझे डराना चाहती हो, या अपनी तन्हाई मिटाना चाहती हो?”
वैदेही चौंक गई। सदियों में पहली बार किसी ने उसकी आँखों में इंसानियत देखी थी।
---
प्रेम का अंकुर
धीरे-धीरे वीरेंद्र जंगल में आता रहा। दोनों की बातें होने लगीं। कभी वह उसे पुराने गीत सुनाती, कभी वीरेंद्र अपनी कविताएँ पढ़ता।
रातों की तन्हाई अब प्रेम में बदल रही थी। वीरेंद्र को उसकी सुंदरता उस भयावह रूप के पार दिखती थी। और वैदेही को वीरेंद्र की आँखों में वही अपनापन दिखता जो सदियों पहले अरिंदम में देखा था।
---
रोमांस का रंग
एक रात चाँदनी में, वीरेंद्र ने उसका हाथ पकड़कर कहा:
“अगर तुम चाहो, तो मैं तुम्हें इस श्राप से मुक्त करने का रास्ता खोजूँगा।”
वैदेही की आँखें नम हो गईं। पहली बार किसी ने वादा किया था कि वह उसे राक्षसी रूप से बाहर निकालेगा।
वह मुस्कुराई और धीरे से उसके कंधे पर सिर रख दिया। उस पल में चाँदनी भी जैसे रुक गई, हवा भी थम गई।
---
एक्शन और संघर्ष
लेकिन तांत्रिक की आत्मा अब भी जीवित थी। उसे पता चला कि वैदेही और वीरेंद्र का प्रेम पनप रहा है।
वह जंगल में प्रकट हुआ और बोला:
“मेरे श्राप को कोई नहीं तोड़ सकता। अगर तूने उसे छुड़ाने की कोशिश की, तो दोनों की मृत्यु निश्चित है।”
तांत्रिक ने काले मंत्रों से अग्नि और भूतों की आंधी खड़ी कर दी।
वीरेंद्र तलवार लेकर उसके सामने डट गया। दोनों में भीषण युद्ध हुआ।
एक तरफ मंत्रों की आग थी, दूसरी तरफ वीरेंद्र की बहादुरी।
अचानक वैदेही ने अपना राक्षसी रूप त्यागकर तांत्रिक को चुनौती दी।
वह बोली:
“तेरे श्राप से मैं डरती थी, पर अब मेरे पास प्रेम की ताकत है।”
उसने वीरेंद्र का हाथ थामा और दोनों ने मिलकर मंत्र तोड़ दिया।
तांत्रिक चीखता हुआ राख में बदल गया।
---
श्राप का अंत
तांत्रिक के नाश होते ही वैदेही का श्राप टूट गया। उसकी लाल आँखें सामान्य हो गईं, चेहरे की सुंदरता लौट आई। सदियों का अंधकार मिट गया।
वह मुस्कुराते हुए बोली:
“आज मुझे अरिंदम नहीं, वीरेंद्र मिला है… और यही मेरा सच्चा प्रेम है।”
वीरेंद्र ने उसे गले से लगा लिया।
जंगल, जो सदियों से भय का प्रतीक था, अब प्रेम का साक्षी बन गया।
---
