डायन की प्रेमकहानी अध्याय 1 – जंगल का रहस्य

📖 डायन की प्रेमकहानी


(अध्याय-दर-अध्याय उपन्यास)


 


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🌑 अध्याय 1 – जंगल का रहस्य


शाम का समय था। सूरज पहाड़ों के पीछे डूब रहा था और आकाश में लालिमा बिखर रही थी। गाँव के लोग जल्दी-जल्दी अपने खेतों से लौट रहे थे। बच्चों को गोदी में उठाए और बैलगाड़ियों को हाँकते हुए सभी के मन में एक ही डर था—

जंगल।


उस जंगल के बारे में हर कोई जानता था।

“सूर्यास्त के बाद वहाँ जाना मौत को बुलाने जैसा है।”

“वहाँ एक डायन रहती है, जिसकी लाल आँखें इंसानों का खून सोख लेती हैं।”


बच्चे रोते तो माँएँ डराकर चुप करातीं—

“सो जा वरना डायन आ जाएगी।”


लेकिन वीरेंद्र के कानों में ये बातें बचपन से ही गूँज रही थीं।

अब वो जवान हो चुका था। लंबा, चौड़ा कद, तेज़ नज़रें और भीतर से निडर। पढ़ाई-लिखाई कर चुका था, इसलिए उसे ये सब दंतकथाएँ ही लगती थीं।


उस रात, जब पूरा गाँव अपने घरों के दरवाज़े बंद कर रहा था, वीरेंद्र अपने कमरे में बैठा सोच रहा था—

"आख़िर सच क्या है? क्या वाक़ई जंगल में कोई डायन है या ये सिर्फ़ अंधविश्वास?"


उसके मन की जिज्ञासा अब डर से ज़्यादा भारी हो चुकी थी।


उसने एक लालटेन उठाई, एक छोटी तलवार कमर में बाँधी और घर से चुपचाप निकल पड़ा।



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🌲 जंगल का प्रवेश


जैसे ही वह जंगल के भीतर पहुँचा, हवा का तापमान अचानक बदल गया।

पेड़ों की लंबी-लंबी शाखाएँ आपस में उलझी हुई थीं, जैसे किसी अजनबी को रोकने के लिए बाँहें फैला रही हों।


झींगुरों की आवाज़, उल्लुओं की हूक, और पत्तों की सरसराहट—सब मिलकर एक अजीब सा संगीत बना रहे थे।

लालटेन की पीली रोशनी झिलमिला रही थी, और हर कदम पर वीरेंद्र को लगता, कोई परछाई उसके पीछे-पीछे चल रही है।


"शायद गाँव वाले सही कहते हैं…"

उसने मन ही मन सोचा, लेकिन तुरंत अपने डर को झटक दिया।



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🌫️ पहली दस्तक


अचानक, हवा का झोंका आया और लालटेन बुझ गई।

अँधेरा गहरा हो गया।


और फिर…


उसके पीछे से किसी औरत की धीमी सी आवाज़ आई—

“कौन आया है…?”


वीरेंद्र का दिल जोर से धड़कने लगा।

उसने मुड़कर देखा।


वहाँ… एक काली परछाई खड़ी थी।

लंबे, बिखरे हुए काले बाल ज़मीन तक लटक रहे थे।

आँखें खून जैसी लाल।

चेहरे पर मुस्कान नहीं, बल्कि अजीब सी खाली निगाह।


गाँव की कहानियाँ मानो जीवंत हो उठीं।

यह वही थी—डायन।


लेकिन वीरेंद्र ने डरकर भागने के बजाय गहरी साँस ली और कहा:

“मैं… इंसान हूँ।

लेकिन तुम जैसी बातें गाँव वाले कहते हैं… तुम वैसी नहीं लग रही।”


उसके शब्द सुनकर वो परछाई कुछ पल के लिए ठिठक गई।



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✨ अध्याय 1 समाप्त

(जंगल के रहस्य की परत तो खुली, लेकिन असली कहानी अब शुरू होगी…)




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