भाग 2: पुनर्जन्म "चंदन वन की यक्षिणी"

🕊️ "चंदन वन की यक्षिणी"

भाग 2: पुनर्जन्म




(एक आत्मिक प्रेम की दूसरी यात्रा)


🪔 अध्याय 1: पुनर्जन्म का आह्वान

15 वर्ष बाद — ऋषिकेश, उत्तराखंड।

सर्दियों की शुरुआत थी।
गंगा किनारे एक छोटा-सा स्कूल चलता था —
“ज्ञानदीप विद्यालय”, जहाँ गाँव के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जाता था।

वहीं एक युवती थी —
अंशिका।

उसकी आँखें हरे रंग की थीं…
बाल लंबे, काले, और चाल में एक अजीब गरिमा।
वह अपनी उम्र से अधिक समझदार लगती थी —
जैसे किसी पुराने जन्म का बोझ लेकर चल रही हो।

🌱 अनजानी पीड़ा

रोज़ रात उसे एक सपना आता था:

एक झील, चाँदनी, और एक युवक जिसकी आँखें उसे ता-उम्र तलाशती हैं।
हर बार वह युवक उसे पुकारता है —
"चंद्रलेखा… चंद्रलेखा…"
और फिर सब राख बन जाता है।

वह चीख कर उठ जाती, दिल तेज़ धड़कता…
लेकिन उसे नहीं पता था क्यों।


🔍 अध्याय 2: आरव की वापसी

दूसरी ओर, आरव अब एक लेखक बन चुका था।

वह अब चंद्रलेखा की याद में लिखता था —
उसने चंदन वन छोड़ दिया था, लेकिन वह प्रेम नहीं भूला।

एक दिन, किसी साहित्य उत्सव में उसे ऋषिकेश बुलाया गया।
वहीं एक कॉलेज में उसने अपनी किताब का परिचय दिया:

"चंद्रलेखा: एक अमर प्रेम कथा"

किताब पढ़ते हुए, एक युवती की आँखें नम हो गईं —
अंशिका की।

वह मंच पर गई, और आरव से पूछा:

“क्या यह कहानी सच्ची है…?”

आरव मुस्कुराया। “कहानी तो बीत गई। अब बस यादें बची हैं।”

अंशिका की साँसें रुक गईं —
उसे पहली बार उसकी आँखें पहचानी दीं।


🌕 अध्याय 3: दो आत्माओं की पहचान

अंशिका ने आरव से कहा:

“मैं आपको पहले भी जानती हूँ… शायद किसी जन्म में…”

आरव चौंक गया।
उसकी नज़र अंशिका की आँखों में गई — वही हरे रंग की चमक।

वह काँप उठा।

“चंद्रलेखा…?”

अंशिका पीछे हट गई। “आपने क्या कहा?”

आरव ने धीरे-धीरे उसके माथे को छुआ —
वहीं जहाँ पहले चंद्रलेखा की तीसरी आँख प्रकट होती थी।

एक बिजली-सी चमकी।

अंशिका बेहोश हो गई।


🕉️ अध्याय 4: पुनर्जन्म की जागृति

रात के समय, जब अंशिका होश में आई —
वह आरव को देख रही थी… लेकिन अब उसकी आँखें वैसी नहीं थीं।

वह अब चंद्रलेखा थी।

“तुमने मुझे मुक्त किया था…
इसलिए मैं दोबारा जन्म ले पाई।
लेकिन तुम्हारे प्रेम की स्मृति मेरी आत्मा में रह गई।”

आरव की आँखों में आँसू थे।

“मैंने उस रात तुम्हें खो दिया था…
आज फिर पाया है।”


🔥 अध्याय 5: पुनर्मिलन

इस बार, उनका प्रेम कोई शाप नहीं था।
ना कोई मृत्यु की शर्त, ना आत्मा का बोझ।

सिर्फ देह, मन और आत्मा का पूर्ण मिलन।

एक बार फिर —
आरव और चंद्रलेखा (अब अंशिका) ने एक-दूसरे को चूमा,
लेकिन इस बार न कोई डर, न जादू —
सिर्फ इंसानी प्रेम।


🌸 अंतिम दृश्य: झील के किनारे फिर से

कुछ वर्षों बाद…
वहीं झील, जहाँ यक्षिणी और मानव आत्मा मिली थी…

अब वहाँ एक छोटा सा आश्रम है —
जहाँ आरव और अंशिका, प्रेम की कथा सिखाते हैं।
लोग कहते हैं, हर पूर्णिमा की रात,
झील से अब भी एक हल्की सी बाँसुरी की आवाज़ आती है…

लेकिन अब वो भय की नहीं,
प्रेम की लोरी है।


भाग 2 समाप्त — "पुनर्जन्म"



"भाग 3 चाहिए?"

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