अध्याय 3: यक्षिणी का शाप और तांत्रिक की चेतावनी

🌑 अध्याय 3: यक्षिणी का शाप और तांत्रिक की चेतावनी





🔥 पिछली रात का असर


आरव, चंद्रलेखा की बाँहों में जो डूबा था, अब उसकी अनुपस्थिति से टूट रहा था।


उसके शरीर पर अब भी उसके स्पर्श की गर्मी थी, लेकिन दिल में एक सिहरन उतर आई थी —

क्या ये सिर्फ प्रेम था? या कुछ और भी?


उसी दिन दोपहर, गाँव में एक वृद्ध आया — लंबा-सा चोगा, झुकी पीठ, और गले में रुद्राक्षों की माला।


उसका नाम था तांत्रिक कालनेमि।


उसने आरव को एकटक देखा और कहा:


> “तू अब उसकी गिरफ्त में है, पुत्र।

चंद्रलेखा… सिर्फ प्रेम नहीं मांगती। वो तुझे खींच रही है उस लोक में… जहाँ से वापसी नहीं होती।”


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🕉️ तांत्रिक की चेतावनी


कालनेमि ने अपनी थैली से एक पुराना ग्रंथ निकाला और एक चित्र दिखाया।


उसमें एक यक्षिणी एक पुरुष को आलिंगन में लिए थी —

उसका चेहरा प्रेम में डूबा था… और उसकी आत्मा, शरीर से बाहर निकल रही थी।


> “यक्षिणियाँ, वासनामयी होती हैं।

लेकिन कुछ ऐसी होती हैं, जो एक प्रेमी को बाँधकर अमर होती हैं।

उनकी मुक्ति एक शर्त पर होती है —

जब कोई पुरुष उन्हें प्रेम के साथ प्राण दे।”


“तो क्या चंद्रलेखा झूठ बोल रही है?” आरव ने पूछा।


> “नहीं… वो प्रेम करती है।

लेकिन उसका प्रेम शुद्ध नहीं है — वो शापग्रस्त है।

वो मर नहीं सकती… और हर सौ साल में एक नया प्रेमी चुनती है।”


आरव का चेहरा पीला पड़ गया।

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🧚‍♀️ चंद्रलेखा का अतीत


उस रात, चंद्रलेखा फिर आई। लेकिन इस बार उसकी आँखों में सिर्फ प्रेम नहीं, पश्चाताप भी था।


“मुझे सच बताओ,” आरव ने कहा।


चंद्रलेखा चुप रही… फिर झील की सतह पर अपने हाथ फेरते हुए बोली:


> “मैं एक राजकुमारी थी… सौंदर्य में अद्वितीय।

एक तांत्रिक ने मुझसे विवाह का प्रस्ताव रखा — मैंने ठुकरा दिया।

उसने मुझे श्राप दे दिया — ‘तू प्रेम की प्यासी रहेगी,

पर हर प्रेमी तुझे मृत्यु के द्वार पर ले जाकर छोड़ेगा।’”


> “मैं अमर हो गई… लेकिन अकेली।

हर सौ साल में एक आत्मा मेरी ओर खिंचती है — जैसे तुम।”

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❤️ अंतिम प्रस्ताव


"क्या तुम मुझे मुक्त करोगे, आरव?"

"क्या वो तुम्हारा अंत होगा?"

"नहीं," उसने कहा, "वो मेरा पुनर्जन्म होगा। लेकिन तुम्हारे लिए... मृत्यु।"


आरव चुप रहा। चंद्रलेखा उसके पास आई, धीरे-धीरे उसके गले में बाँहें डालीं।

उसकी साँसे फिर तेज़ होने लगीं।


“अगर तुम चाहो… हम एक साथ इस लोक से जा सकते हैं।

तुम भी यक्ष बन सकते हो — मेरे साथ, चिरकाल तक।”


> "या फिर…"

"…मैं तुम्हें प्रेम करूँ, और तुम्हारे प्रेम में मर जाऊँ।"

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☠️ दुविधा


आरव की आँखों में आँसू थे।

वह उसे चाहता था… उसकी आत्मा उस यक्षिणी से जुड़ गई थी।

लेकिन क्या वह अपनी मृत्यु स्वीकार कर सकता था?


या वो तांत्रिक की सहायता ले, और चंद्रलेखा को भुला दे?


या तीसरा रास्ता है… यक्ष बन जाना। पर इंसानियत छोड़ देना।

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🔚 अध्याय 3 समाप्त

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🔮 अब आगे?


अध्याय 4 में: अंतिम मिलन और निर्णय


आरव तांत्रिक से एक ऐसा मंत्र सीखता है जिससे वह चंद्रलेखा को मुक्ति दे सकता है…

पर उसमें उसके प्रेम का त्याग करना होगा।


चंद्रलेखा उसे एक आखिरी बार अपने लोक में बुलाएगी —

जहाँ वे दोनों एक आखिरी मिलन में डूबते हैं…

लेकिन उस रात की सुबह कुछ नहीं होती… सिर्फ एक निर्णय बचता है।

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