कहानी: "चंद्रकुंड की यक्षिणी
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स्थान: मध्यप्रदेश का एक गुप्त वन — चंद्रकुंड, जहाँ एक झील है जो चाँदनी रात में नीले प्रकाश से जगमगाती है।
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प्रस्तावना:
राजवीर, एक पुरातत्वविद् और रोमांचक खोजों का शौकीन, एक दिन एक पांडुलिपि में एक रहस्यमयी झील चंद्रकुंड का ज़िक्र पढ़ता है, जहाँ कहा जाता है कि एक यक्षिणी पिछले पाँच सौ वर्षों से अपने प्रेमी की प्रतीक्षा कर रही है।
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अध्याय 1: आगमन
राजवीर अपने दल के साथ जंगलों में चंद्रकुंड तक पहुँचता है। झील शांत, नीली और रहस्यमयी है। रात को जैसे ही चाँद की रोशनी झील पर पड़ती है, वातावरण में एक मधुर लेकिन करुणा भरी तान गूंजने लगती है।
दल के अन्य लोग डर जाते हैं, लेकिन राजवीर उस संगीत से आकर्षित होकर झील के किनारे बैठ जाता है। अचानक धुंध के बीच से एक स्त्री आकृति उभरती है — अद्भुत सौंदर्य, नीली आँखें, लंबे काले बाल, और पारंपरिक आभूषणों से सजी — यक्षिणी।
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अध्याय 2: मोह
यक्षिणी का नाम था मालिनी। वह राजवीर को देखती है और मुस्कुराती है। वह कहती है कि उसने उसे सदियों से स्वप्न में देखा है। दोनों की आत्माएँ जैसे किसी पुराने जन्म से जुड़ी हों।
राजवीर पहले तो डरता है, पर उसकी आँखों में ऐसा दर्द है कि वह उससे बात करता है। कुछ ही दिनों में दोनों में एक अद्भुत प्रेम पनपता है — ऐसा प्रेम जो आत्मा को छू जाए।
मालिनी उसे बताती है कि वह एक श्रापित यक्षिणी है, जिसे प्रेम के कारण श्राप मिला था। वह तभी मुक्त हो सकती है जब कोई पुरुष सच्चे प्रेम से उसका साथ निभाए — शरीर, मन और आत्मा से।
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अध्याय 3: वासना या मुक्ति?
एक रात, चंद्रग्रहण की रात, जब झील रक्तवर्ण हो जाती है, मालिनी राजवीर को अपने पास बुलाती है। वातावरण में ऊर्जा, डर और आकर्षण — सब एकसाथ है।
उनके बीच शारीरिक और आध्यात्मिक मिलन होता है — ऐसा जिसे शब्दों में बाँधना मुश्किल हो। यह सिर्फ वासना नहीं थी, बल्कि मुक्ति की चाबी।
मालिनी की आत्मा काँपती है, रोती है, हँसती है — और फिर...
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अध्याय 4: अन्तिम रहस्य
मालिनी मुक्त हो जाती है। लेकिन जैसे ही वह हवा में विलीन होती है, राजवीर को अचानक अहसास होता है कि वह झील से बंध चुका है।
उसके शरीर में यक्षिणी की शक्ति प्रवेश कर चुकी है — और अब वह चंद्रकुंड का रक्षक बन गया है।
अब वह झील पर आने वाले हर आगंतुक को परखता है — कहीं कोई और मालिनी उसकी तरह इंतज़ार तो नहीं कर रही...
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अंत:
प्यार ने श्राप को तोड़ा, लेकिन एक नई शुरुआत के लिए किसी और को बाँध लिया।
