🌕 अध्याय 4 – प्रेम की शुरुआत
उस रात के बाद वीरेंद्र की बेचैनी और बढ़ गई।
अब जंगल उसके लिए डर की जगह नहीं, बल्कि किसी चुंबक की तरह था।
हर रात, जब गाँव के घरों के दरवाज़े बंद हो जाते, वह लालटेन और हिम्मत लेकर उसी जंगल का रास्ता पकड़ लेता।
🌲 चाँदनी की रात
उस रात आसमान साफ़ था। चाँद पूरा और गोल था, जिसकी रोशनी जंगल की काली जड़ों और पत्तों पर चाँदी सी चमक बिखेर रही थी।
वैदेही वही खड़ी थी—बरगद के नीचे।
लेकिन इस बार उसकी आँखों में ग़ुस्सा या दर्द कम था, और शांति ज़्यादा।
वीरेंद्र ने आते ही कहा:
“आज तुम्हें देखकर लगता है जैसे जंगल भी तुम्हारा इंतज़ार करता है।”
वैदेही हल्के से मुस्कुराई।
“जंगल को पहली बार कोई ऐसा इंसान मिला है, जो मुझसे भागा नहीं।”
🌹 बातें और नज़दीकियाँ
वे दोनों एक चट्टान पर बैठ गए।
वीरेंद्र ने उसे गाँव के किस्से सुनाए, बच्चों की शरारतें, खेतों की मेहनत, त्योहारों की रौनक।
वैदेही बड़े ध्यान से सुनती रही।
सदियों बाद उसने इंसानी ज़िंदगी की बातें सुनी थीं।
“तुम्हें पता है?” वैदेही ने कहा,
“मैंने सदियों से किसी के साथ इतनी देर तक बातें नहीं कीं। कभी सोचा नहीं था… कि कोई मुझे सुन भी सकता है।”
वीरेंद्र मुस्कुराया:
“तुम इंसानों से अलग नहीं हो, वैदेही। बस… तुम्हें गलत समझा गया है।”
🌌 चाँदनी का जादू
हवा में ठंडक बढ़ गई थी।
पेड़ों की डालियों से छनकर आती चाँदनी सीधी वैदेही के चेहरे पर पड़ रही थी।
उसकी आँखें अब लाल नहीं थीं, बल्कि उस रोशनी में चमक रही थीं।
वीरेंद्र ने धीरे से कहा:
“अगर तुम डायन होती, तो यह चाँदनी तुमसे डरती।
लेकिन देखो… चाँदनी तुम्हें और सुंदर बना रही है।”
वैदेही का चेहरा लाल हो गया। सदियों बाद उसने यह अहसास किया—वो किसी के लिए खूबसूरत थी।
💕 पहला स्पर्श
वैदेही ने संकोच से अपना हाथ आगे बढ़ाया।
उसके हाथ ठंडे थे, जैसे बर्फ।
वीरेंद्र ने बिना झिझक उसका हाथ पकड़ लिया।
“तुम्हें डर नहीं लगता?” वैदेही ने धीरे से पूछा।
वीरेंद्र ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया:
“डर तो मुझे अकेलेपन से लगता है। और तुम्हारे साथ… मैं अकेला नहीं हूँ।”
उस एक स्पर्श ने सदियों का सन्नाटा तोड़ दिया।
वो पलों में दोनों के बीच कुछ नया जन्म ले चुका था—
प्रेम का अंकुर।
🌺 वैदेही का वादा
वैदेही ने धीरे से फुसफुसाया:
“अगर यह सपना है तो टूटे मत… अगर सच है तो खत्म मत हो।
मैंने सदियों तक अंधेरे को झेला है, लेकिन अब तुम्हारे साथ रोशनी देखना चाहती हूँ।”
वीरेंद्र ने उसका हाथ कसकर थाम लिया:
“यह सपना नहीं है, वैदेही।
यह शुरुआत है… तुम्हारी, मेरी और हमारी कहानी की।”
✨ अध्याय 4 समाप्त
(अब प्रेम जाग चुका है। लेकिन सच्चे प्रेम की राह कभी आसान नहीं होती। अगले अध्याय में तांत्रिक की आत्मा उनकी कहानी में बाधा बनेगी।)
