🕉️ भाग 4: यक्ष-लोक का प्रवेश
(प्रेम और मृत्यु के पार, आत्मा की अंतिम परीक्षा)
🕯️ अध्याय 1: तांत्रिक का सौदा
कालनेमि ने अपने काले कमंडल से राख उठाकर आग में डाली।
अग्नि भभक उठी —
उसमें एक दृश्य दिखाई दिया: यक्ष-लोक।
एक ऐसा स्थान जहाँ समय नहीं चलता… जहाँ स्त्रियाँ पत्थर बनी बैठी थीं —
प्राचीन यक्षिणियाँ, अपने प्रेमियों की प्रतीक्षा में।
कालनेमि बोला:
“यदि तू अपनी स्त्री को बचाना चाहता है,
तो तुझे यक्ष-लोक में प्रवेश करना होगा।
पर उसका द्वार तब खुलेगा… जब एक पवित्र आत्मा की बलि दी जाए।”
आरव चीख पड़ा —
“नहीं! मैं किसी और को नहीं मरने दूँगा!”
“तो खुद तैयार हो जा —
आत्मा त्यागने को, देह जलाने को,
और प्रेम की अग्नि में गलने को…”
कालनेमि की आँखों में अंधकार था।
🛕 अध्याय 2: यक्ष-लोक में प्रवेश
आरव ने एक अग्नि कुण्ड बनाया।
उसने अपने कपड़े त्यागे, शरीर पर भस्म लगाई, और मंत्र पढ़ता हुआ
अपने ही प्रेम में समाधि में चला गया।
एक पल में उसका शरीर धधक उठा।
और जब आँखें खुलीं…
वह अब यक्ष-लोक में था।
वहाँ समय नहीं था।
ना दिन, ना रात… सिर्फ
नीले प्रकाश और
स्त्रियों की मौन सिसकियों की प्रतिध्वनि।
🧝♀️ अध्याय 3: चंद्रलेखा का बंधन
एक चट्टान पर बैठी थी चंद्रलेखा —
अब वह फिर से यक्षिणी बन चुकी थी।
उसकी देह नग्न थी, पर अब उसमें काम नहीं, शोक का सौंदर्य था।
“तुम आ गए…” उसने धीमे से कहा।
“अब लौट नहीं सकते…”
आरव उसके पास गया, और उसके हाथ थाम लिए।
“तुम्हें यहाँ से निकालने आया हूँ…
लेकिन इस बार मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं।
अगर मुझे यक्ष बनना पड़े, तो मैं तैयार हूँ —
पर प्रेम अधूरा नहीं रहेगा।”
🔥 अध्याय 4: अंतिम समर्पण
यक्ष-लोक की ऊर्जा अब उन्हें घेरने लगी।
आरव और चंद्रलेखा — दोनों ने एक बार फिर एक-दूसरे को आलिंगन में लिया।
लेकिन अब यह कोई साधारण मिलन नहीं था।
यह देह का त्याग था,
आत्मा का मिलन था —
एक अंतिम यज्ञ, जहाँ प्रेम ने स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया।
उनके मिलन से यक्ष-लोक की दीवारें थरथराईं।
स्तब्ध यक्षिणियाँ जागने लगीं।
और तभी…
एक प्रकाश फूटा — एक स्त्री-पुरुष की संयुक्त आत्मा में।
🕊️ अध्याय 5: मुक्तियाँ और नया जन्म
प्रकाश के विस्फोट के बाद, सब शांत हो गया।
- यक्ष-लोक का द्वार टूट गया।
- यक्षिणियाँ मुक्त हो गईं।
- और आरव-चंद्रलेखा की आत्माएँ एक होकर
धरती पर फिर जन्म लेने चली गईं।
🌸 अंतिम दृश्य — एक नवजात प्रेम
21 साल बाद —
वाराणसी के एक घाट पर एक युवा चित्रकार,
आरवांश,
एक युवती की तस्वीर बनाता है, जो गंगा की ओर देख रही है।
उसका नाम है — लेखा।
वे दोनों एक-दूसरे को देखते हैं, मुस्कुराते हैं…
और कुछ पल को सब रुक जाता है।
दोनों को नहीं पता,
लेकिन उनकी आत्माएँ जानती हैं —
वे युगों से प्रेम में हैं।
🪷 "चंदन वन की यक्षिणी" — पूर्ण कथा समाप्त
📜 संक्षेप में: यह कहानी थी —
- प्रेम की, जो देह से आत्मा तक गया।
- कामना की, जो कभी बंधन बनी, तो कभी मुक्ति।
- और एक ऐसी यक्षिणी,
जो प्रेम से शापित थी…
लेकिन अंततः उसी प्रेम से मोक्ष पाई।
