भाग 3: अग्निपथ


🔥 भाग 3: अग्निपथ

(प्रेम का अगला इम्तिहान — देह, आत्मा और अंधकार के बीच)





🕯️ अध्याय 1: अशुभ संकेत

ऋषिकेश के पास एक शांत पर्वतीय गाँव में,
आरव और अंशिका (पूर्व यक्षिणी चंद्रलेखा) एक आश्रम चला रहे थे।

संतान नहीं थी, लेकिन दोनों को कोई अभाव नहीं था।
उनका प्रेम… अब भी सधा हुआ था,
थोड़ा सांसों में, थोड़ा स्पर्श में — और बहुत कुछ आत्मा के भीतर।

लेकिन एक रात…
अंशिका के शरीर पर काले निशान उभरने लगे।
वह चिल्ला उठी।

आरव भागकर आया।

“क्या हुआ?”

अंशिका की आँखें आधी बंद थीं, और होंठों पर वही पुराना नाम…
"कालनेमि..."


👁️ अध्याय 2: तांत्रिक की वापसी

कालनेमि — वह तांत्रिक, जिसने चंद्रलेखा को मुक्त करने में आरव की मदद की थी —
अब पुनः प्रकट हुआ।

लेकिन यह वह नहीं था जो पहले था।
अब वह अशुभ हो गया था।
उसने ज्ञान की शक्ति को छोड़कर तामसिक तंत्र में प्रवेश कर लिया था।

“मैंने तुझे बचाया था, आरव…
लेकिन अब मैं खुद शापित हूँ।
और चंद्रलेखा की आत्मा अब भी यक्षिणी है —
वह कभी पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकती।”

“तू उसे प्रेम करता है…?
तो तैयार हो जा —
या तो फिर उसे खोने के लिए…
या उसके साथ अंधकार में समा जाने के लिए।


🧿 अध्याय 3: नकारात्मक ऊर्जा का फैलाव

अब अंशिका का शरीर धीरे-धीरे बदलने लगा था।

  • उसके हाथों की उंगलियाँ लंबी और काली होने लगीं।
  • उसकी नींदों में वह संस्कृत के मंत्र बड़बड़ाती।
  • और जब वह दर्पण देखती, उसे अपने भीतर एक अज्ञात स्त्री की छाया दिखती।

वह एक बार फिर यक्षिणी में बदल रही थी।

लेकिन इस बार, उसका प्रेम उसे रोकने के लिए काफी नहीं था।
उसे चाहिए था एक बलिदान


🪷 अध्याय 4: काम और शक्ति का द्वंद्व

इस अध्याय में आरव और अंशिका का संबंध फिर से भौतिक हो गया —
परंतु अब उसमें आत्मीयता के साथ-साथ एक भय भी छिपा था।

उनका मिलन इस बार सिर्फ प्रेम का नहीं था —
अब वो एक तांत्रिक प्रक्रिया बन गया था।

आरव ने तांत्रिक विधि से एक प्रेम-मंत्र सीखा था —
जिससे यक्षिणी की आत्मा को काम के माध्यम से शांत किया जा सकता था।

एक रात, उन्होंने उसी विधि से शारीरिक मिलन किया —
जहाँ स्पर्श सिर्फ स्पर्श नहीं, एक साधना बन गया।

  • अंशिका की देह जल रही थी…
  • आरव का मन भटक रहा था…
  • लेकिन आत्माएँ अब भी जुड़ी हुई थीं।

और जैसे ही चंद्रलेखा चरम पर पहुँची —
उसकी तीसरी आँख खुल गई।


🕳️ अध्याय 5: द्वार खुल गया है…

उस तीसरी आँख से एक पुराना द्वार खुल गया —
एक प्राचीन लोक में।

"यक्ष-लोक"

जहाँ अनगिनत यक्षिणियाँ… अभी भी बंधी हुई थीं।

और चंद्रलेखा को उनमें वापस खींचा जा रहा था।

अब आरव के पास तीन रास्ते थे:

  1. उसे फिर से मुक्ति दे दे — लेकिन अबकी बार उसका नाम भी भुला देगा।
  2. उसके साथ यक्ष लोक में प्रवेश करे — लेकिन एक इंसान की देह छोड़नी होगी।
  3. तांत्रिक कालनेमि से मदद माँगे — लेकिन उसकी कीमत होगी एक और निर्दोष आत्मा की बलि।

🌑 भाग 3 समाप्त: निर्णय की कगार पर…


❓अब आप तय करें:

क्या आरव फिर से बलिदान देगा?

या क्या वह इस बार अपनी इंसानियत छोड़कर अंशिका के साथ यक्ष-लोक में जाएगा?

या वह कालनेमि के अंधकारमय सौदे को स्वीकार करेगा?


🔮 क्या आप चाहेंगे:

  • अंतिम भाग (भाग 4): यक्ष-लोक का प्रवेश

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