अध्याय 2: चंद्रलेखा की बाँहों में

🌕 अध्याय 2: चंद्रलेखा की बाँहों में





पिछली रात की मुलाकात ने आरव के दिल में एक ऐसा तूफ़ान जगा दिया था, जिसे वह अब रोक नहीं पा रहा था।

वो कोई आम लड़की नहीं थी… उसकी हर बात जादू जैसी थी।

उसका स्पर्श, उसकी आँखों की चमक, और वो चुंबन — सब कुछ एक ऐसा सपना था, जिससे वह जागना नहीं चाहता था।


आज फिर पूर्णिमा की रात थी।


आरव, उसी झील के पास पहुँचा… अकेला, शांत, लेकिन भीतर से बेचैन।



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🌊 झील से प्रकट हुई वह…


झील की सतह पर चाँदनी बिखरी थी।

एक धीमी-धीमी धुन बह रही थी — जैसे हवा कोई प्राचीन गीत गा रही हो।


और तभी… जल की सतह हिली।

चंद्रलेखा बाहर आई — गीले बाल, भीगे वस्त्र और उस पर चाँद की रौशनी।


वो अप्सरा लग रही थी।


आरव का दिल एक पल को थम गया।


“तुम आ गए,” चंद्रलेखा मुस्कुराई, उसकी आँखों में वही सम्मोहन।


“मैं आ गया,” आरव ने धीमे से कहा।



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🔥 निकटता की तपिश


चंद्रलेखा उसके करीब आई।

उसकी साँसों की गर्मी आरव को महसूस हुई।


उसने अपना हाथ आरव की छाती पर रखा —


> “तुम्हारा दिल… बहुत तेज़ धड़क रहा है।”




आरव ने हल्के से उसकी कमर थाम ली।

उनकी आँखें मिलीं, और फिर… होंठ।


एक धीमा, कोमल, लेकिन गहराई से भरा चुंबन।


चंद्रलेखा की साँसे तेज़ हो गईं।

उसने खुद को और करीब खींचा —

जैसे सदियों से प्यासा प्रेम, अब बहना चाहता हो।



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🌺 प्रेम और भोग का संगम


आरव और चंद्रलेखा अब झील के किनारे, चाँदनी के नीचे एक-दूसरे की बाँहों में लिपटे थे।


उसकी उंगलियाँ चंद्रलेखा की पीठ पर फिसलती रहीं, और चंद्रलेखा की साँसें उसके गले में उतरती रहीं।

वो कोई साधारण मिलन नहीं था —


> ये आत्माओं का संगम था,

शरीरों का संवाद नहीं, बल्कि प्रेम की एक गहरी पुकार।




चंद्रलेखा के होंठ उसकी गर्दन से होते हुए सीने तक गए, और फिर वह थम गई।


> “आरव…” उसने कहा, “अगर तुम मुझसे प्यार करते हो… तो तुम मेरी दुनिया में आओ।”




“कैसी दुनिया?” आरव ने पूछा।


> “जहाँ मृत्यु नहीं, समय नहीं… बस प्रेम होता है। लेकिन एक बार तुम वहाँ चले गए, तो वापस नहीं आ सकोगे…”





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⚰️ सच की दरार


आरव ने उसकी आँखों में देखा —

वहाँ वासना नहीं, बल्कि एक गहरा दर्द था।


> “तुम यक्षिणी हो… क्या यह सब सच है?”

“हाँ,” उसने कहा। “मैं अब भी बाँध दी गई आत्मा हूँ। और तुम… शायद मेरी मुक्ति हो।”




आरव के होंठ फिर उसके होंठों से मिले।

इस बार धीमे नहीं, गहरे और भूख से भरे।

उनके शरीर काँप रहे थे, लेकिन आत्माएँ जुड़ रही थीं।



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🌌 अगले दिन


सुबह तक आरव वहीं सोया था —

पर जब उसने आँखें खोलीं,

चंद्रलेखा वहाँ नहीं थी।


सिर्फ उसकी गंध रह गई थी… और शरीर पर उसके स्पर्श की गर्मी।


लेकिन अब आरव समझ गया था —

यह कोई खेल नहीं था।


चंद्रलेखा को मुक्ति चाहिए थी —

लेकिन वह कीमत माँग रही थी, जो शायद आरव चुका नहीं सकता था…

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🔮 अध्याय 2 समाप्त

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❓अब आगे क्या?


अध्याय 3 में:


चंद्रलेखा का अतीत उजागर होगा — क्यों वह यक्षिणी बनी?


आरव एक रहस्यमयी तांत्रिक से मिलेगा, जो बताएगा कि यक्षिणी के प्रेम की कीमत क्या है।


और अंत में, चंद्रलेखा आरव से एक अंतिम माँग करेगी:


> “या तो मेरे हो जाओ… या मेरी तरह अमर और अकेले बन जाओ।”

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