चंद्रवन की यक्षिणी



कहानी: "चंद्रवन की यक्षिणी"




(हॉरर, रोमांच, प्रेम और वासना से जुड़ी एक रहस्यमयी कहानी)

भाग 1: रहस्यमयी जंगल

राजस्थान के एक दूरदराज़ इलाके में एक घना जंगल था — चंद्रवन। लोगों का मानना था कि वहां रात के समय कोई नहीं जाता, क्योंकि वहाँ एक यक्षिणी का वास था। कहा जाता था कि वह जवान पुरुषों को आकर्षित कर के उनका शिकार करती है।

आरव, एक पुरातत्वविद, को चंद्रवन में एक प्राचीन मंदिर की जानकारी मिली। इतिहास की तलाश में वह जंगल की ओर निकल पड़ा। उसके साथ थी उसकी प्रेमिका अन्वी, एक फोटोजर्नलिस्ट।

रास्ता कठिन था, मगर दोनों रोमांच के शौकीन थे। चंद्रवन में प्रवेश करते ही माहौल बदल गया — हवा में अजीब सरसराहट थी, और पेड़ों से जैसे कोई देख रहा हो।


भाग 2: मंदिर और मुलाकात

तीसरे दिन, वे एक खंडहरनुमा मंदिर तक पहुंचे। मंदिर के अंदर एक मूर्ति थी — एक अत्यंत सुंदर स्त्री की, जिसकी आँखें जीवित लगती थीं। मंदिर की दीवारों पर संस्कृत में श्लोक लिखे थे, जिनमें यक्षिणी का वर्णन था।

उसी रात, आरव को सपना आया — एक दिव्य स्त्री उसे बुला रही थी। उसके होंठ लहराते, आँखों में गहराई थी और चाल में सम्मोहन।
वो बोली:
"तुमने मुझे जगा दिया है… अब तुम मेरे हो।"

सुबह आरव बदला हुआ लग रहा था — उसकी आँखों में बेचैनी थी, और शरीर थका-सा। अन्वी को शक हुआ, पर उसने कुछ नहीं कहा।


भाग 3: मोह और माया

अगली रात आरव बिना बताए जंगल में चला गया। वहाँ एक जलाशय के पास वही यक्षिणी प्रकट हुई — स्वर्णाभा, उसकी रूपवती आकृति, झिलमिलाता वस्त्र, और चंदन-सी खुशबू से आरव सम्मोहित हो गया।

वहाँ उन्होंने प्रेम किया — कामुकता और रहस्य के बीच। वह अनुभव किसी स्वप्न जैसा था, लेकिन उस मिलन के बाद आरव की देह क्षीण होने लगी।

वापसी पर अन्वी ने आरव का हाल देखा — वो जैसे किसी और दुनिया में जी रहा था।


भाग 4: यथार्थ और युद्ध

अन्वी ने मंदिर की शिलाओं को पढ़ना शुरू किया और उसे पता चला कि यक्षिणी को मुक्ति तभी मिल सकती है जब कोई प्रेम से नहीं, आत्मा से उससे जुड़े — बिना वासना के।

वो आरव को बचाना चाहती थी। अगली रात वो खुद मंदिर गई और यक्षिणी का सामना किया।

स्वर्णाभा ने कहा:
"वह अब मेरा है — शरीर से भी और आत्मा से भी। तुम प्रेम कहती हो, लेकिन वह मेरी वासना में कैद है।"

अन्वी ने चुनौती दी:
"अगर तुम वाकई मुक्ति चाहती हो, तो सच्चे प्रेम की परीक्षा दो। मैं अपने प्रेम से आरव को तुम्हारी वासना से छुड़ाऊंगी।"

फिर एक अजीब मानसिक युद्ध शुरू हुआ — कामना बनाम करुणा, मोह बनाम मोहब्बत।


भाग 5: मुक्ति

अन्वी ने आरव को गले लगाया, और कहा:
"तुम्हारा शरीर नहीं, तुम्हारी आत्मा चाहिए… लौट आओ।"

उसके आँसुओं की गर्मी और दिल की सच्चाई ने आरव की आँखें खोल दीं।
यक्षिणी की चीख गूंजी — वह पिघलने लगी, जैसे सदियों की पीड़ा बह रही हो।

स्वर्णाभा मुस्कराई, और बोली:
"तुम दोनों ने मुझे सिखाया कि प्रेम और वासना में अंतर होता है। मेरी मुक्ति तुम्हारे प्रेम से ही संभव थी।"

वह रोशनी में बदल गई — और चंद्रवन की रात पहली बार शांत हो गई।


अंतिम दृश्य:

आरव और अन्वी मंदिर से बाहर निकले। अब जंगल डरावना नहीं था, बल्कि जैसे किसी कहानी का अंत हो चुका हो।
उनका रिश्ता और भी गहरा हो गया — अब वो सिर्फ शरीर से नहीं, आत्मा से भी जुड़े थे।


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