प्रेतनी का अंत

👻 प्रेतनी का अंत





गाँव से कुछ ही दूर एक सूखा हुआ तालाब था। लोग कहते थे वहाँ रात को अजीब आवाज़ें आती हैं। कोई रोने की, कोई कराहने की, और कभी किसी औरत की धीमी हँसी।

बुज़ुर्ग कहते थे—“वो जगह अपवित्र है। वहाँ एक प्रेतनी का वास है।”

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🌑 रात की दस्तक


एक बार शहर से आए तीन युवक—राघव, अजय और समीर—ने गाँव वालों की बात को अंधविश्वास समझा।

उन्होंने सोचा:

"एक औरत की आत्मा? हँसी आती है इन कहानियों पर।"


वे रात को लालटेन और मोबाइल लेकर तालाब के किनारे पहुँच गए।

तालाब की मिट्टी गीली थी, पानी सड़ चुका था और बदबू आ रही थी।

अचानक… चारों तरफ़ अजीब सन्नाटा छा गया।

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👁️ पहली झलक


अजय ने देखा—दूर किनारे पर एक औरत खड़ी थी।

सफ़ेद साड़ी, लंबे बाल जो ज़मीन तक घिसट रहे थे।

उसका चेहरा अंधेरे में छुपा हुआ था।


“कोई औरत यहाँ क्या कर रही है?”

समीर हँसते हुए बोला।

लेकिन तभी… वो औरत हवा में तैरते हुए उनकी ओर बढ़ने लगी।

लाल आँखें चमकीं और आवाज़ आई—

“क्यों आए हो मेरी मौत के घर में…?”

⚰️ श्राप का सच


राघव काँपते हुए बोला—

“त… तुम कौन हो?”


वो औरत चीख़ी—

“मैं वही हूँ… जिसे इस गाँव ने ज़िंदा जला दिया था।

पति की मौत के बाद मुझ पर कलंक लगाया, चुड़ैल कहा।

अब मैं प्रेतनी बनकर बदला ले रही हूँ।

कोई भी यहाँ आकर जिंदा नहीं जाता।”


उसकी चीख़ से तालाब का पानी उबलने लगा।

चारों तरफ़ राख जैसी धूल उड़ने लगी।


🩸 आतंक


अजय और समीर डरकर भागने लगे, लेकिन अचानक दोनों के पैरों में कीचड़ कसकर पकड़ लिया।

वे जितना भागते, उतना धँसते जाते।

प्रेतनी ने हाथ उठाया और दोनों की चीख़ें रात के सन्नाटे में गूँज उठीं।


राघव अकेला बचा।

वो ज़मीन पर गिर पड़ा और काँपते हुए बोला—

“मुझे छोड़ दो… मैं तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”


🔥 प्रेतनी का अंत


प्रेतनी उसकी ओर झपटी ही थी कि अचानक मंदिर की घंटी बज उठी।

पास के पुजारी ने शंख बजाते हुए मंत्र पढ़ना शुरू कर दिया।

जलते हुए दीपक की रोशनी दूर से तालाब तक फैल गई।


प्रेतनी दर्द से चीख़ी—

“नहीं… रोशनी… नहीं… मंत्र…!”


उसका शरीर राख में बदलने लगा।

उसकी लाल आँखें बुझ गईं और एक काली परछाई हवा में विलीन हो गई।


🌘 मौन


तालाब फिर शांत हो गया।

लेकिन कीचड़ में अजय और समीर की लाशें धँसी पड़ी थीं।

राघव काँपते हुए भागा और कसम खाई—

“इस जगह का नाम तक कभी नहीं लूँगा।”


गाँव वाले अब भी कहते हैं—

तालाब भले ही शांत हो गया हो, पर अमावस्या की रात को अब भी वहाँ से औरत के रोने की आवाज़ आती है।




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